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70 Years of Indian
Constitution
विधान की रचना में िो िष्श, ग्यारह महीने और सत्रह विन िगे। उस सम्य ह्ारा संविधान'इविया' से 'भारत' के
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पररन्सथवत्यां विपरीत थी पर संविधान वनमा्शताओं ने अपने संक्प और
वििेक को अविवचवित रखा। संविधान सभा के तीन पड़ाि थे। पहिा पड़ाि आत्साक्ातकार की अनंत यात्रा है। खास बात है
सं3 जून, 1947 को पूरा हुआ। 15 अगसत, 1947 से पुनः ्यात्रा बढ़ी। िह 26 वक भारत के लाेगों ने ही इसे संभि बनाया है।
निंबर, 1949 को पूरी हुई। हर पड़ाि पर पहुंचने में असाधारण बौवद्धक रणकौरि का
पररच्य संविधान सभा के नेतृति ने वि्या। वजसका सुखि पररणाम संविधान की रचना में समझना पड़ता है। संविधान की उद्ेवरका, मौविक अवधकार-कत्शव्य और नीवत वनिरक
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घवटत हुआ। िर ‘सितंत्र िोकतंत्रातमक गणराज्य’ बना। ततिों के अवभप्ा्य से अिगत िही हो सकेगा जो उस भाि से अपने मन के तार को जोड़
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भारत का संविधान भारती्यों ने बना्या, जबवक वरिवटर उपवनिर रहे कीवन्या, पाएगा जो संविधान वनमा्शताओं के थे। इस तरीके से संविधान के प््योजन को आतमसात
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मिवर्या, घाना और श्ीिंका का संविधान अंग्ज अफसरों ने बना्या। उसी सम्य करना संभि है। राषट्ी्य आंिोिन की आकांक्ा संविधान की उद्ेवरका में है।
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इजरा्यि और पावकसतान की संविधान सभा भी िहां के संविधान की रचना में रत थी, संविधान के आिरगों, प््योजन, राज्य व्यिसथा और संविधान के स्ोत के अिािा
पर उत्हें सफिता नहीं वमिी। इस कारण पावकसतान 1956 तक वरिवटर डोवमवन्यन बना संविधान के िागू होने की तारीख का भी उद्ेवरका में उ्िेख है। संविधान के विरेषज्ञ
रहा, जबवक संविधान सभा ने 1949 में ही भारत को गणराज्य घोवषत कर वि्या। ्यहां हमें एन.ए. पािकीिािा ने उद्ेवरका को संविधान का पररच्य पत्र बता्या है। उद्ेवरका का
्यह जानना चावहए वक भारत के संविधान की रचना एक ऐवतहावसक उपिन््ध थी। हमारे मम्श इन र्िों में है-‘त््या्य, सितंत्रता, समता, बंधुता।’ बंधुता में िसुधैि कुटुमबकम का
इवतहास के ििाट पर ्यह अंवकत है। संविधान से ‘इंवड्या’ भारत से आतमसाक्ातकार विचार वनवहत है। मूि उद्ेवरका का अपना एक इवतहास है। हर र्ि अपने में एक रासत्र
की ्यात्रा पर चि पड़ा। सवि्यों बाि एक संिैधावनक राज्य व्यिसथा सथावपत हुई। िर ने है। एक विचार है। मूि उद्ेवरका के हर र्ि में संविधान वनमा्शताओं का अवभप्ा्य व्पा
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राजनीवतक सितंत्रता प्ा्त कर एक नए ्युग में किम रखा। संविधान वनमा्शता सिाांगीण हुआ है। इसविए उनका संिभ्श जानने का हर वकसी को उद्म करना चावहए। सुप्ीम कोट्ट
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सितंत्रता के िक््य से प्ररत थे। संविधान में सच्ची सितंत्रता के विए विविध प्ािधान वकए ने भी अपने अनेक वनण्श्यों में उद्ेवरका के अवभप्ा्य को सिवोपरर सथान वि्या है। वनण्श्यों
गए हैं। इस बारे में संविधान सभा के नेतृति ने सम्य-सम्य पर अपने उदगार भी व्य्त में उसकी व्याख्या की है। उसके महति को वचन्त्हत वक्या है। सुप्ीम कोट्ट संविधान का
वकए। उसे साथ्शकता िेने के विए संविधान में संप्भुता भारत के िोगों में वनवहत की गई संरक्क है। इस भूवमका में उसने उद्ेवरका के अवभप्ा्य को सम्य-सम्य पर िाणी िी है।
है। इसका अथ्श ्यह है वक संविधान भारत के िोगों से रन््त पाता है। वजसे भारत के िोगों इस तरह संविधान के प्ािधानों को उद्ेवरका के आिोक में समझने का क्रम चि पड़ा है।
ने बना्या, सिीकार वक्या और सि्यं को अवप्शत वक्या। उसे अपने उपर िागू वक्या। इस कह सकते हैं वक संविधान की मंवजि उद्ेवरका में हैतो संविधान के प्ािधान मंवजि पर
रीवत से भारती्य संविधान भारती्य जनता को समवप्शत है। ्यह सं्योग नहीं, इसे सुविचाररत पहुंचने के माग्श हैं। उद्ेवरका में संविधान का िर्शन सूत्र रूप में है।
सु्योग कहना चावहए। संविधान में वनरंतरता और निीनता का मेि है। हािांवक संविधान संविधान के िर्शन की एक झिक मूि अवधकारों में वमिती है। हर नागररक को
िृहिाकार है। वफर भी उसकी अंतरातमा को जानना कवठन नहीं है, सरि है। संविधान की अवभव्यन््त, विशिास, उपासना की सितंत्रता, अिसर की समानता आवि अवधकार के
अंतरातमा के प्वत वजज्ञासा पहिे विन से है। इन सात िरकों में इस बारे में अगर कहीं कोई रूप में उपि्ध है। मूि अवधकारों से भारत में समानता की भािना का संचार हुआ है।
भ्रम ्या संिेह रहा है तो िह िूर हो ग्या है। अब ्यह हर वकसी को सपषट है वक उद्ेवरका, हाईकोट्ट और सुप्ीम कोट्ट में अवधकार संबंधी िाि इसके जीिंत प्माण हैं। मूि अवधकार
मौविक अवधकार-कत्शव्य और नीवत वनिेषक ततिों में संविधान की अंतरातमा का वितान सरकार और संसि पर भी म्या्शिा वनधा्शररत करते हैं। इन अवधकारों ने संसि और सुप्ीम
है। इनमें परसपरता है। इत्हें अिग-अिग नहीं िेखना चावहए। ््योंवक इनमें आंतररक कोट्ट की सिगोंच्चता में सेतु बना्या है।
संबंध है। इत्हें तीन र्िों से पररभावषत वक्या जा सकता है-िाक्, अथ्श और अवभप्ा्य। मूितः सात मौविक अवधकार थे। अब िे ्ः हैं। संपवति के अवधकार को अब ‘कु्
िाक् अथा्शत र्ि। अथ्श में उस र्ि का पररच्य आ जाता है। िवकन अवभप्ा्य को
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