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70        Years of Indian

                                                                      Constitution



                                                                                        प्राचीन भारत के कई राजयों ्ें भी रारा के
                       East India Company  का रासन 1757 से 1857 तक चिा। आवखर
               1857  में  भारती्य  सितंत्रता  संग्ाम  रुरू  हुआ।  रानी  िक्मीबाई,  तात्या  टोपे,  पेरिा   अवधकारों के बराय लोकशाही को ्हति
               नानासाहब, बहािुरराह जफर, बेगम जीनत महि, बाबू कुंिर वसंह जैसे कई िीरों और   वदया गया। यह एक अन्प् उदाहरण है।
                                                                                                                       ु
               िीरांगनाओं के रूप में भारतिष्श को अनेक रौ्य्श, उनकी राहित, उनकी िीरता और
               उनकी समप्शण की प्तीवत हुई।                                           भारतिावस्यों की आजािी की मनोकामना पूरी हुई।
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                   वहविओं की सहा्यता से वहविओं का सितंत्रता संग्ाम बड़ी क्रूरता से, वनि्श्यता से       अब सितंत्रत भारत के  विए संविधान की जरूरत सामने आई। िैसे तो 1946
               अंग्जों ने कुचि वि्या। मगर वरिटन की पावि्श्यामेंट में इसके उग् प्त्याघात पड़छे, िहां   में कैवबनेट वमरन जब भारत आ्या तब ही संविधान सभा वनवम्शत हो चुकी थी।
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               के राजनीवतज्ञों में गहन विचार-विमर्श हुए और आवखर त्य वक्या ग्या वक ‘ईसट इंवड्या      डॉ. बाबासाहेब भीमराि आंबेडकर उनके अध्यक् थे। डॉ. बाबासाहेब परम
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               जैसी व्यापारी कंपनी के हाथ में इंवड्या जैसे बड़छे िर का रासन सुरवक्त नहीं रखा जा   विद्ान थे, उनकी Educational Qualification थी, MA,Phd, Bar of Law,
               सकता।’   रिटन ने ईसट इंवड्या कंपनी को compensation िे कर कंपनी को मु्त कर   MSc, DSc, LLD। िेे सपषटि्ता, प्खरधारा रासत्री, सत्यवनषठ, समाज सुधारक और
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               वि्या और इंवड्या का रासन इंगिैंड ने संभाि वि्या।                     इवतहासविद् थे। उसकी महार जावत असपृश्य मानी जाती थी। इस िजह से बाबासाहेब को
                   ्यह ईसट इंवड्या कंपनी 419 साि के बाि आज भी मौजूि है और पािनपूर – गुजरात   और उनके पूरे पररिार को बहुत ही संताप सहने पड़छे थे। भारती्य संसकृवत पर िगे हुए
               के संज्य मेहता नाम के एक जैन ्यिक ने ्यह कंपनी खरीि िी है। आज ्यह ्यिक   असपृश्यता के किंक के िाग को वमटाने में उनकी ्यह िेन महतिपूण्श रही था। भारतिष्श
                                                                         ु
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               इसका संचािन कर रहा है । 1857 में महारानी वि्टोरर्या के जावहरनामा के साथ वरिटन   के 284 मात््य विद्ान संविधान सभा के सिस्य थे।
                                                                          छे
               की पावि्श्यामेंट ने भारत का कारोबार संभाि वि्या।                          विनांक  09/12/1946  से  संविधान  सभा  का  का्य्श  रुरू  हुआ  और  विनांक
                       इंवड्या के Administration के विए एक viceroy  की वन्यन््त की गई   26/11/1949 के विन पूरा हुआ। 2 साि 11 महीने 18 विन िगे ्यह का्य्श संपत्र होने में।
                                                                    ु
               और उनकी सहा्यता के विए एक कैवबनेट की रचना भी की गई। मगर 1857 में सितंत्रता   इसमें 447 किमें हैं, 22 विमाग हैं और 12 अनुसूवचकाएं हैं ।
               की जो वचंगारी प्ज्िवित हुई थी अब िह जिािा बन चुकी थी। भारत जाग उठा था और    विशि के कई िरों से प्रेणा िे कर हमारे संविधान का वनमा्शण वक्या ग्या है। वरिटन
                                                                                                                                               छे
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               विराट जन समुिा्य जब जाग उठता है तब िवन्या की कोई ताकत उसे जंजीरों में जकड़   के िोगों ने राजाराही विरूद्ध क्रांवत करके राजा जॉन को ‘मेग्ाकाटा्श’ पर हसताक्र करने
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               नहीं सकती।                                                           के विए मजबूर वक्या। वरिटन ने राजाराही को वन्यवत्रत करके िोकराही की सथापना की।
                                                                                                                      ं
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                दशभकत लोकमानय बतलक न ऐलान बकया                                         प्ाचीन भारत में ऐसे सितंत्र गणराज्य भी थे वजस पर राजा का कोई अवधकार नहीं था,
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                 “swaraj is my birth right and I shall have it”                     उिाहरण के तौर पर :-
                महातमा गांधरी जरी न कहा-                                               कवपििसतु में रा््य, िरािी में विच्िी, वमवथ िा में वििेह, कविंग में मौ्य्श िगैरह
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                                                                                                       ै
                “Do or Die” करेंग या मरेंग  षे                                      िरों के ऐसे और भी सितंत्र गणराज्य थे। कई िरों से प्रणा िेकर संविधान की रचना
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                                                                                                                           े
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                                   षे
                नताजरी सुभाषिंद िोस न मांगा                                         की है। हमने िोकराही का्य्श प्णािी और संसिी्य रासन पद्धवत की प्रणा वरिटन से
                                                                                                                                             छे
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                ‘तुम मुझ खून दो, मैं तुमहें आजादरी दूंगा’                           िी है। सितंत्र त््या्यतंत्र और मूिभूत अवधकारों की प्रणा अमेररका से, समत्ि्य तंत्र
                                                                                                                          े
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                दश के रिांबतकाररी नौजरानों न ललकारा                                 की विवरषटताएं कनाडा से और नीवत विष्यक वसद्धांतों की प्रणा आ्यरिैंड से िी है।
                                                                                                                               े
                ‘रतन करी राह में रतन के नौजरां शहरीद हो।’                           सितंत्रता, समानता और मातृ भाि की भािना जो फांस के रूसो िो्टछे्यर और मोत्टछेस््यू
                आबखर 1942 में अंग्जों को स्पषट रू्प स कहा गया                       जैसे क्रांवतकाररओं की िेन है, उसे भारत ने अपने संविधान में सिीकार वक्या है।
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                ‘Quit India’‘भारत छोड़ो’                                                हमार संबरधान सभा के 284 सदसयों न 26 नरिर 1949 के बद न मतदान भरी
                                                                                                                           ं
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                 इस ि्त भारती्य सितंत्रता संग्ाम सफि हुआ। 15 अगसत 1947 के विन हमारा िर   बकया और हसताक्र भरी –
               आजाि हुआ। िाि वकिे पर वतरंगा िहरा्या। बड़ी भारी कीमत चुकाने के बाि िाखों
                                                                                            “हम भारत के िोग हमारी संविधान सभा द्ारा सिीकृत संविधान का सिीकार
                                                                                      70 Years of Indian Constitution                         135
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