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70       Years of Indian                                                                                                                                             Years of Indian

                                                                                                                                                                                                                                    Constitution
                                                                        Constitution





               कानूनों का संरक्ण’ प्ा्त है। िह मूि अवधकार नहीं है। व्यन््तगत सितंत्रता मूि   बा्पू ने कहा थिा वक ्ितंत्र भारत ्ें ग्ा् ्िरार
               अवधकारों की धुरी है। व्यन््तगत सितंत्रता की रक्ा सामावजक, आवथ्शक और राजनीवतक   को शासन की ्ूल इकाई बनाया राए। गांि
               त््या्य से संभि है। मूि कत्शव्य को भी संविधान में रखा ग्या है। मूि अवधकार की व्यिसथा
               से राज्य पर वजममेिारी आती है। मूि कत्शव्य से नागररक में िाव्यति बोध पैिा होता है।   आत्वनभ्जर होंगे तो देश आत्वनभ्जर होगा।
               नागररक की चेतना से राख हट जाती है।
                  संविधान िोकतत्रातमक गणराज्य का आिर्श प्सतत करता है। उसे साकार करने के विए   है। भारत में विवध के रासन की एक आिर्श अिधारणा हमारी परंपरा में है। वजसे गांधीजी न  े
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               ि्यसक मतावधकार और सत्री-पुरुष में समानता सवनन्शचत की गई है। इससे राजनीवतक   रामराज्य की सज्ञा िी। संविधान ने उसे आधवनक र्िाििी िी। वजसकी केंद्ी्य अिधारणा
                                                  ु
               त््या्य के वसद्धात का पूरा पोषण हो जाता है। िोकतावत्रक गणराज्य का वसद्धात िासति में   में िोकतंत्र, प्वतवनवध संसथाएं, सतिा का विकेंद्ीकरण, विवध का रासन और ग्ाम सिराज्य
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               क््याणकारी राज्य के िैचाररक िर्शन पर आधाररत है। इसे ही डॉ. भीमराि रामजी आंबेडकर   का आिर्श प्मुख है। राज्य व्यिसथा के अंग के रूप में संसि, रासन और त््या्यपाविका स  े
               ने इन र्िों में सपषट वक्या-‘राजनीवतक िोकतंत्र से ही हमें संतुषट नहीं हो जाना चावहए।   कौन नागररक ऐसा होगा जो अपररवचत होगा! संविधान की साथ्शक सात िरक की अबाध
               अपने राजनीवतक िोकतंत्र को हमें सामावजक िोकतंत्र का रूप िेना चावहए। सामावजक   ्यात्रा से भारती्य िोकतंत्र ने अपनी सफिता का वतरंगा विशि पटि पर िहरा्या है। पन्शचमी
               िोकतंत्र का ््या अथ्श है, इसका अथ्श है िह जीिन पद्धवत जो सितंत्रता, समानता और बंधुता   विचारकों की आरंका वनराधार वसद्ध हुई हैं। इसे भारत की जनता ने सफि और साथ्शक
                                                                                                                                          े
               को मात््यता िेती है।’ ्यही भािना संविधान वनमा्शताओं की थी।            बना्या है। ्यही सम्य है जब उद्ेवरका, मौविक अवधकारों-कत्शव्यों और नीवत वनिरक ततिों
                  भारत में सवि्यों से विविधता में एकता का सांसकृवतक प्िाह गवतमान है। संविधान वनमा्शता   को पूरी तरह िागू करने के विए नागररक समाज को रासन व्यिसथा में अवधक अवधकार
               इसे पुषट और प्बि िेखना चाहते थे। िे विविधता को विवभन्नता में पररिवत्शत करने के   संपन्न बना्या जाना चावहए। महातमा गांधी का सपना था वक सितंत्र भारत में ग्ाम सिराज्य
                                                                                                  ू
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               खतरनाक खिों से भिीभावत न केिि पररवचत थे, बन््क भारत विभाजन की त्रासिी के साक्ी   को रासनतंत्र की मि इकाई बना्या जाए। उनके इस विचार को बड़ी कवठनाई से संविधान
                                                                                             े
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               भी बने थे। इसविए संविधान से उत्होंने जो राज्य व्यिसथा का्यम की उसमें पंथवनरपक्ता के   के नीवत वनिरक तति में सथान वमिा। इस पर अमि का िाव्यति राज्य का है। महातमा गांधी
                                                                                                                                        ं
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               विए कु् प्ािधान वकए, जैसे अनुच्छेि 25,26,27,। भारत के संविधान में पंथवनरपक्ता   का ग्ाम सिराज्य पंचा्यत प्णािी से साकार होगा। अगर ऐसा हो सका तो हर गाि आतमवनभ्शर
                                                                                                                                          ं
               एक महतिपण्श वसद्धात है। आपातकाि में संविधान सरोधन कर पंथवनरपक्ता को उद्ेवरका   होगा। 17िीं सिी से पहिे जब भारत सोने की वचवड़्या माना जाता था, तब गाि पंचा्यत
                                                                े
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               में सथान वि्या ग्या। िह अनािश्यक था ््योंवक ्यह वसद्धात मि संविधान की मािा में   प्णािी से ही चिते थे। 73ि संविधान सरोधन से सतिा के विकेंद्ीकरण की मात्र वखड़की
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               डोरे की भावत उपन्सथत ही था। िह पररित्शन राजनीवत प्ेररत ज्यािा था। हर नागररक को   खिी है। पूरी तरह पंचा्यती राज प्णािी वजस विन िागू हो जाएगी, तब राजनीवतक रन््त
                                                                                                               ं
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               आतमसममान से जीिन जीने का अिसर वमिे, इसविए संविधान में मि अवधकार के प्ािधान   साधारण नागररक के हाथ में होगी। िे गाि-पंचा्यत की समस्याओं को सि्यं हि कर सकेंगे।
                                                                                                                                     ै
               हैं। जो महातमा गांधी के इस कथन को वचन्त्हत करते हैं-‘ऐसा भारत वजसमें गरीब से गरीब भी   ्यह संभि है अगर पंचा्यतराज प्णािी की कानूनी, प्रासवनक और मनोिज्ञावनक बाधाएं िूर
                                                                                                   ं
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               ्यह समझेगा वक ्यह उसका िर है। वजसके वनमा्शण में उसका भी हाथ है।’ िवकन संविधान   कर िी जाएं। प्धानमत्री नरेंद् मोिी ने आतमवनभ्शर भारत का आह्ान पंचा्यती राज वििस पर
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                                                                       े
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               इससे भी परे हमें पहंचाता है। ्यह सिैधावनक आकांक्ाओं और िक््यों को िज्श कर हमरा ्याि   ही वक्या। उत्होंने विशि बंधुति से ओतप्ोत आतमवनभ्शरता की एक िैचाररक संक्पना िी।
               वििाता है। जैसे अनुच्छेि 44 जो समान नागररक सवहता की आिश्यकता को वचन्त्हत करता   उसका िाहक सिभाविक रूप से पंचा्यत राज प्णािी ही हो सकती है।
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                     श्री रामबहादुर राय हहंदरी के प्रहसद्ध पत्कार एवं इंहदरा गांधरी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अधयक्ष हैं। वत्तमान में वे देश करी सबसे पुरानरी (1948 में स्ाहपत) बहुभाषरी न्यूज
                    एजेंसरी हहन्दुस्ान समाचार और उसके प्रकाशनों के समूह समपादक हैं। कम समय में हरी समाज से जुड़े सवालों पर प्रभावरी लेखन के जररए पहचान बना चुकरी पाहक्षक
                          पहत्का 'य्ावत' राम बहादुर राय के समपादन में प्रकाहशत होतरी है।  राय देश के हवहभन्न पत्-पहत्काओं में कॉलम हलखते रहे हैं,जो बहुत चहच्तत हुए।
              132   70 Years of Indian Constitution
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