Page 9 - Constitution
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70 Years of Indian
Constitution
विशि के सभी संविधानों का अध्य्यन करके व्यापक विचार-विमर्श के पशचात्
भारती्य संविधान को आकार वि्या ग्या था। संविधान वनमा्शण के विए हुए मंथन ह्ारा संविधान वसफ्फ एक विवधक नहीं, बसलक
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की गहनता को इस तथ्य से समझा जा सकता है वक संविधान की प्ारूप सवमवत की सा्ावरक द्तािर है, रो स्ार के सभी
141 बैठकें हुईं और इस प्कार 2 साि 11 महीने और 17 विन बाि, एक प्सतािना, िगा्जें को स्ता का अवधकार देता है।
395 अनुच्छेि ि 8 अनुसूवच्यों के साथ सितंत्र भारत के संविधान का मूि प्ारूप
तै्यार करने का काम पूरा हुआ। के तीन सौ से अवधक चुनाि हो चुके हैं, वजनमें मतिाताओं की बढ़ती भागीिारी हमारे
मूि संविधान से िेकर अबतक िर ने एक िमबी ्यात्रा त्य की है और इस िौरान िोकतंत्र की सफिता को ही िरा्शती है।भारती्य िोकतंत्र ने विशि को विखा्या है वक
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संविधान में सम्यानुसार अनेक पररित्शन भी वकए गए हैं।आज हमारे संविधान में 12 राजनीवतक रन््त का रांवतपूण्श और िोकतान्त्त्रक तरीके से हसतांतरण वकस प्कार
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अनुसूवच्यों सवहत 400 से अवधक अनुच्छेि हैं, जो इस बातके द्ोतक हैं वक िर के वक्या जाता है।
नागररकों की बढ़ती आकांक्ाओं को समा्योवजत करने के विए रासन के िा्यरे का भारती्य संविधान ने राज्य व्यिसथा के घटकों के बीच रन््त्यों के विभाजन की
वकस प्कार सम्यानुकूि विसतार वक्या ग्या है।आज ्यवि भारती्य िोकतंत्र सम्य व्यिसथा भी बहुत सुसंगत ढंग से की है। संविधान द्ारा राज्य के तीनों अंगों अथा्शत्
की अनेक चुनौवत्यों से टकराते हुए न केिि सुिृढ़ ढंग से खड़ा है, अवपतु विशि विधाव्यका, का्य्शपाविका और त््या्यपाविका को अपने-अपने क्त्र में पृथक, विवरषट
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पटि पर भी उसकी एक विवरषट पहचान है, तो इसका प्मुख श्े्य हमारे संविधान और साि्शभौम रखा ग्या है, तावक ्ये एकिूसरे के अवधकार क्त्र का अवतक्रमण न
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द्ारा वनवम्शत सुिृढ़ ढाँचे और संसथागत रूपरेखा को जाता है। भारत के संविधान में करें। भारती्य िोकतान्त्त्रक व्यिसथा में संसि सिवोच्च है, परत्तु, उसकी भी सीमाएं
सामावजक, आवथ्शक और राजनीवतक िोकतंत्र के विए एक संरचना तै्यार की ग्यी हैं। संसिी्य प्णािी का का्य्श-व्यिहार संविधान की मूि भािना के अनुरूप ही होता
है।इसमें रांवतपूण्श और िोकतान्त्त्रक िन्षटकोण से विवभन्न राषट्ी्य िक््यों की प्ान््त है। संसि के पास संविधान में संरोधन करने की रन््त है, मगर िो उसके मूि
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सुवनन्शचत करने और उत्हें प्ा्त करने के प्वत भारत के िोगों की प्वतबद्धता को ढाँचे में कोई पररित्शन नहीं कर सकती। अंगीकृत वकए जाने से िेकर अब तक हमारे
रेखांवकत वक्या ग्या है। संविधान में आिश्यकतानुसार सौ से अवधक संरोधन वकए जा चुके हैं। परत्तु, इतने
िासति में, हमारा संविधान केिि एक विवधक िसतािेज नहीं है, अवपतु ्यह संरोधनों के बािजूि इसकी मूि भािना अक्णण बनी हुई है।
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एक ऐसा महतिपूण्श साधन है, जो समाज के सभी िगगों की सितंत्रता को संरवक्त भारती्य संविधान नागररक वहतों पर विरेष बि िेता है, वजसका प्मुख प्माण
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करते हुए जावत, िर, विंग, क्त्र, पंथ ्या भाषा के आधार पर भेिभाि वकए वबना संविधान के भाग-3 में अनुच्छेि-12 से अनुच्छेि-35 तक मौजूि नागररकों के
प्त्येक नागररक को समता का अवधकार िेता है और राषट् को प्गवत और समृवद्ध के मौविक अवधकारों की व्यिसथा है। ्यह व्यिसथा सभी भारती्य नागररकों को एक
पथ पर िे जाने के विए कृतसंकन््पत विखता है।्यह विखाता है वक हमारे िूरिरशी समान धराति पर िाकर एकता के सूत्र में वपरोने का काम करती है। मूि संविधान
संविधान वनमा्शताओं का भारती्य राषट्िाि में अवमट विशिास था। इस संविधान के में नागररकों के सात मूिभूत अवधकारों का उ्िेख था, िवकन 44िे संविधान
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साथ चिते हुए विगत सात िरकों में हमने अनेक उपिन््ध्यां प्ा्त की हैं। विशि संरोधन द्ारा उनमें से ‘संपवति के अवधकार’ को हटाकर, इसे संविधान में उन््िवखत
का सबसे बड़ा और सफि िोकतंत्र होने का गौरि हमें प्ा्त है। मतिाताओं की कानूनी अवधकारों के तहतरख वि्या ग्या। इस प्कार ित्शमान में हमारा संविधान
विराि संख्या और वनरंतर होते रहने िािे चुनािों के बािजूि हमारा िोकतंत्र नागररकों को ्ः मूिभूत अवधकार प्िान करता है, वजनमें समता का अवधकार,
कभी अन्सथरता का वरकार नहीं हुआ, अवपतु चुनािों के सफि आ्योजन से हमारे सितंत्रता का अवधकार, रोषण के विरुद्ध अवधकार, धावम्शक सितंत्रता का अवधकार,
संसिी्य िोकतंत्र ने सम्य की कसौटी पर सि्यं को वसद्ध वक्या है। सात िरकों की संसकृवत ि वरक्ा संबंधी अवधकार और संिैधावनक उपचारों के अवधकार रावमि
इस िोकतान्त्त्रक ्यात्रा के िौरान िर में िोकसभा के सत्रह और राज्य विधानसभा हैं। इन अवधकारों के माध्यम से संविधान ने राषट् में मौजूि सांसकृवतक विविधता को
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