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70 Years of Indian Years of Indian
Constitution
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एकता के धराति पर साधने का ही प््यत्न वक्या है। िसतुतः नागररकों को प्िान आर ह्ारे सा्ने रो चुनौवतयां और लक्य
्यह अवधकार हमारे संविधान की अंतरातमा हैं।
मौविक अवधकारों के साथ-साथ हमारा संविधान नागररकों के विए कु् हैं, उन्ें यह आिशयक है वक ह् अ्पने
मौविक कति्शव्य भी सुवनन्शचत करता है। मौविक अवधकारों की व्यिसथा तो मूि कत्जवयों का ्पूरी दृढ़ता के साथि ्पालन करें।
संविधान में ही थी, परत्तु कािांतर में जब ्यह अनुभि वक्या जाने िगा वक
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भारती्य नागररक अपने मौविक अवधकारों के प्वत तो सजग हैं, परत्तु, कति्शव्य नागररक िर को आगे िे जाने के विए कति्शव्य भाि से ्य्त रहकर का्य्श करे।
भािना उनमें नहीं पनप रही, तब 42िे संविधान संरोधन के द्ारा संविधान में नए भारत के वनमा्शण की संक्पना हो ्या आतमवनभ्शर भारत का िक््य, ्ये सभी
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मौविक कति्शव्यों को जोड़ा ग्या। आज अनुच्छेि 51(ए) के तहत हमारे संविधान िक््य तभी साकार हो सकते हैं, जब िर के नागररक अपने संिैधावनक कत्शव्यों
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में कुि 11 मौविक कति्शव्य िवण्शत हैं, वजनमें से 10 कति्शव्य42िें संरोधन के को िेकर पूरी तरह से गंभीर ि सजग हों। मैं आरा करता हूं वक िर के नागररक,
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माध्यम से जोड़छे गए थे जबवक 11िां मौविक कति्शव्य िष्श 2002 में 86िें संविधान विरेषकर हमारे ्यिा, संविधान द्ारा वनधा्शररत मौविक कति्शव्यों के प्वत सचेत हैं
संरोधन के द्ारा रावमि वक्या हुआ था। और ्यह बात उनके का्यगों से भी प्कट होगी। आज हमारे संविधान को अंगीकृत
संविधान में प्वतषठावपत मौविक कति्शव्यों का उद्श्य ्यह है वक िर के िोग वकए जाने के 71 िष्श पूरे हो गए हैं। इस अिसर पर हमें अपने मनीषी संविधान
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संविधान द्ारा प्ा्त मौविक अवधकारों के आधार पर वनरंकुर न हो जाएं अवपतु वनमा्शताओं को कृतज्ञ प्णाम करते हुए रांवत, सद्ाि और भाईचारे की भािना
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अवधकारों के साथ-साथ िोकतांवत्रक आचरण और व्यिहार के कु् मौविक पर आधाररत 'एक भारत श्षठ भारत' का वनमा्शण करने की विरा में राषट् को
मानकों का अनुपािन करने की सजग चेतना और कति्शव्य-बोध की भािना उनमें आगे िे जाने और संिैधावनक वसद्धांतों का अनुपािन करने के प्वत सि्यं को
बनी रहे ््योंवक अवधकार और कति्शव्य एक-िूसरे के साथ जुड़छे हुए हैं। प्वतबद्ध रखने का संक्प िेना चावहए। िसतुतः आज भारत के नागररक के रूप
इसी संिभ्श में विचार करें तो आज िर के समक् वजस तरह की चुनौवत्यां हैं में हमें संविधान प्िति अवधकारों से अवधक उसके द्ारा वनधा्शररत कत्शव्यों पर ध्यान
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और वजन ऊंचे िक््यों को िेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, उनकी मांग है वक नागररकों िेने की आिश्यकता है। अवधकार तो हमारे पास हैं और रहेंगे ही, परत्तु, ्यवि
में राषट् के प्वत अपने कति्शव्यों के बोध की भािना सुिृढ़ रहे। इ्कीसिीं सिी को हम अपने नागररक कति्शव्यों को आतमसात कर सके और उनके अनुरूप अपने
्यवि भारत की सिी बनाना है, तो इसकी अवनिा्य्श रत्श है वक भारत का प्त्येक का्य्श-व्यिहारों को आगे बढ़ा सके तो ्यह सिी वनन्शचत ही भारत की सिी होगी।
श्री ओम बिरला राजस्ान के कोटा संसदरीय क्षेत्र स लगातार दूसररी िार सांसद बनराबित हुए हैं।
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समाजसषेरा के क्षेत्र में लंिषे समय स सबरिय ओम बिरला रतवामान में 17रीं लोकसभा के अधयक् हैं।
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