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70       Years of Indian                                                                                                                                             Years of Indian

                                                                                                                                                                                                                                    Constitution
                                                                        Constitution


               समपूण्श पारंपररकता के साथ-साथ वनरंतर अद्तन एिं अत्याधुवनक होने को ततपर भी   अवत् ड्ाफ्ट से ्पहले 2000 से जयादा संशोधन वकए
                                                                                           ं
                                          दे
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               िन्षटगोचर होता है। राज्य के नीवत-वनिरक ततिों में विरेष रूप से भारती्य सांसकृवतक
               विचारभूवम का विगिर्शन कराने और अपने िार्शवनक आधार-सतंभों को वचहांवकत करते हुए   गए। 26 निंबर को इसका फाइनल ड्ाफ्ट ्िीकार
                                                                                                        े
               भारती्य संविधान परंपरा और आधुवनकता का अद्भुत सं्योजन करता विखाई पड़ता है।   वकया गया, लवकन लागू हुआ 26 रनिरी 1950 से।
               अपने िार्शवनक आधारों में भारती्य साि्शभौवमक मू््यों की सतत अवभरक्ा के साथ-साथ
               भारती्य संविधान सि्श-सिीकृत िन्शिक विवधक मू््यों तथा अत्याधुवनक संक्पनाओं से   का उदघोष भी है। िोकतांवत्रक अवभकरणों का वनषपािक भी है, संिैधावनक मू््यों
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               तािातम्य भी सथावपत करता है। भारती्य संविधान अपनी सांसथावनक वनवम्शवत्यों की रन््त   का संरक्क भी है। नैवतक मानिणडों का वनधा्शरक भी है, अम्या्शवित आचरणों का
               संरचना को त््या्यवप््यता और सिार्यता की तुिा पर न्सथत भी करता है, परत्तु वकसी भी   वन्यामक भी है। विवध-प्सारक अवभिेख भी है, सामात््य नागररक की असंविगध आसथा
               प्कार की पक्धरता और व्यन््तगत पूिा्शग्ह के सबि वनषेध को भी प्ािधावनत करता है।   का केंद् वबिु भी है। भारती्य संविधान िसतुतः आधुवनक भारत का सि्श-समािृत एिं
                                                                                            ं
               भारती्य संविधान अपने िैचाररक अवधषठान में परंपरा से अविन्च्न्न है और आधुवनकता   सिवोतिम सिीकृत पवित्रतम ग्थ है, जो भारती्य िोकतंत्र, संसिी्य व्यिसथा, गणतंत्र,
                                                                                                         ं
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               से सं्य्त है। मनुष्यों के मध्य अपररहा्य्श समतििन्षट की अवनिा्य्शता को सुिृढ़ करते हुए   नागररक अवधकार और कत्शव्य, नागररकता, त््या्य एिं िणड व्यिसथा, विवध वनमा्शण
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               भारती्य संविधान सामावजक िन्षट को समािरी, सहृि्यी और संििनरीि बनाने के   एिं वक्र्यात्ि्यन, आवि सिा्शवधक महŸतिपूण्श आ्यामों पर समपूण्श भारतिष्श का सम्यक,
                                                               े
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               विवधक प््यत्न भी करता है। इसीविए भारती्य संविधान विरि सामावजक एिं सांसकृवतक   समुवचत, सुसपषट, समचीन, साथ्शक एिं समथ्श माग्श िर्शन करता है।
               पररित्शन का सूत्रपात करने िािी क्रांवत का अग्िूत भी बन जाता है। सामावजक कुरीवत्यों   भारती्य संविधान न केिि राजनीवत समुिा्य अवपतु समग् भारती्य समाज का पथ
               का पररहार करते हुए, विवरषट औपबन्त्धक प्ािधान करते हुए, तथा त््या्य एिं िणड की   प्िर्शक ग्त्थ है। ्यह सामात््य भारती्य नागररक की राजनीवतक व्यिसथा में आसथा का
               प्वक्र्याओं को जनोत्मुखी बनाते हुए भारती्य संविधान संसिी्य िोकतंत्र की संरचनाओं   आधार है। साथ ही ्यह सामावजक एिं सांसकृवतक जीिन के विवभन्न तत्तुओं की विवधक
               तथा संवक्र्याओं को आिश्यक सीमाओं में आबद्ध भी करता है। भारती्य संविधान अपनी   संरचनाओं से सम्यक् संगवत का विरा सूचक संकेत है। भारती्य िोक जीिन में सामात््य
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               वन्यामक रन््त की व्यािवति में, अपनी विवधक वनःसृवत में, अपनी व्यिसथागत प्कृवत   नागररक के विए िैधावनक उपबत्धों के साि्शजनीन अज्ञान के रहते हुए भी भारती्य
               में, अपनी व्यािहाररक प्िवति में, अपनी सिाभाविक वनषपवति में और अपनी मौविक   संविधान उसका सिा्शवधक सर्त संबि है। अपनी सŸार िष्श की ्यात्रा में अनेक प्कार
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               प्वतपतिी में आधुवनक भी है और पुरातन भी है। वनरंतर पररित्शन-क्म भी है, नैसवग्शक रूप   के व्यिधानों एिं राजनीवतक विचिनों से सि्शथा अप्वतहत भारती्य संविधान भारती्य
               से अनमनी्य भी है। सिभाितः जवटि भी है, व्यिहार में प््योग-सुिभ भी है। र्ि-  नागररक की िन्षट में कभी भी वनसतेज अथिा वनषप्भ नहीं हुआ है। ्यही उसकी सबसे
                                                                                               ृ
               वित््यास और िा््य-संरचना में न््िषट भी है, अपनी भािभूवम में सुबोध और सुगम   बड़ी ऊजा्श है जो अपनी रन््त का संचार समसत भारती्य नागररकों में सहज रूप में कर
               भी है। पाशचात्य एिं आधुवनक राजनीवतक समुिा्यों से प्भावित भी है, भारती्यता से   सि्यं भी तेजसिी हो उठती है।
               ओतप्ोत भी है। िन्शिक विवधक व्यिसथाओं का प्वतवबंबन भी है, भारती्य पारंपररकता
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                        प्रो. संजरीव कुमार शमा्त, कुलपहत, महातमा गांधरी केंद्ररीय हवशवहवद्ालय, मोहतहाररी (हबहार) बनने से पहले वे उत्तर प्रदेश के मेरठ के चौधररी चरण हसंह
                      हवशवहवद्ालय में राजनरीहतक शासत् हवभाग के एचओडरी ्े. प्रोफेसर शमा्त ने बरीए से लेकर परीएचडरी तक करी पढाई भरी मेरठ हवशवहवद्ालय में करी ्री. वे
                                                साल 2007 से 25 फरवररी 2019 तक इस हवशवहवद्ालय में पढाने का काम करते रहे।














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