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70        Years of Indian

                                                                      Constitution
                                                                                        2 साल 11 ्हीने और 17 वदन ्ंथिन के                   े


                            रती्य  संविधान  के  आवधकाररक  अध्येताओं  और  व्याख्याताओं  के
                            िन्षटपथ में भी संिैधावनक रूप से भारत से पूि्श विकवसत राषट् ही
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                                                                                        बाद 299 सद्यों िाली संविधान सभा न
                            आते हैं। ऐसी न्सथवत में भारती्य संविधान से वनःसृत और विवन्यवमत
               भा गणतंत्र की विद्मान संक्पना वन:संिेह अपने सिरूप, संचिन और              भारत के  संविधान को अंगीकृत वकया।
               वनवम्शवत में आधुवनक ही है। 26 जनिरी 1950 को अवधवन्यवमत और आतमावप्शत भारती्य
               संविधान अनेकानेक गौरिपूण्श विवरषटताओं से सं्य्त है।                  संविधान वनम्श्या्शवित एिं अिोकतांवत्रक आचरणों को वन्यवत्रत करता है। भारती्य संविधान
                                                  ु
                                                                                                                           ं
                  िगभग तीन िष्श के विसतृत, गहन तथा ताŸविक विचार-विमर्श की तावक्फक पररणीवत   नागररकों के मौविक अवधकारों को सिवोच्च िरी्यता प्िान करते हुए व्यन््त के जीिन के
               के रूप में प्ा्त भारती्य संविधान अपनी वनमा्शत्री सभा के सं्योजन में भी विवरषट रहा है।   अवधकार तथा व्यन््त की गररमा की िरेण्यता को रेखांवकत करता है। भारती्य संविधान
               महातमा गांधी, ज्यप्कार नारा्यण और डाॅ. राम मनोहर िोवह्या के अपिाि के अवतरर्त   आवथ्शक अथिा राजनीवतक त््या्य की अपेक्ाओं के समक् सामावजक त््या्य की प्ान््त
               ततकािीन भारतिष्श की समसत उपि्ध मेधा, मनीषा और प्वतभा भारती्य संविधान सभा   को सिवोच्च प्ाथवमकता िेता है। ्यह संविधान विचार, अवभव्यन््त, आसथा, विशिास
               में उपन्सथत थी। िगभग तीन सौ सिस्यों की उस सभा में भारतिष्श की विवभन्न भाषाओं,   एिं उपासना की सितंत्रता को अत््य सभी सितंत्रताओं की पूिा्शिश्यकता सिीकार करता
               विवभन्न क्ेत्रों, विवभन्न उपासना पद्धवत्यों, विवभन्न समुिा्यों, विवभन्न विचारधाराओं तथा   है। गणतांवत्रक संरचना के रीष्शसथ पि पर विराजमान राषट्पवत के अवधकारों, कत्शव्यों
               विवभन्न रुवच्यों के विज्ञ सत्री-पुरुष अपनी समपूण्श वनषठा और आग्हों के साथ विद्मान थे।   एिं रन््त्यों पर संसिी्य िोकतांवत्रक व्यिसथा की प्वतच्ा्याओं के रहते हुए भी सितंत्र
               उन सिस्यों ने अपने पंथ, सामावजक पृषठभूवम, आवथ्शक िन्षट और िैचाररक प्वतबद्धताओं   वििेकाधीन रन््त-प्ािधानों की सृन्षट भी भारती्य संविधान की विरेषता है।
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               को समग् राषट्ी्य विवध वनमा्शण के आिोक में वनरंतर पररषकृत और पररमावज्शत करते हुए   अपनी अगण्य संरचनातमक एिं प्का्या्शतमक वििक्णताओं के कारण विवरषट सममान
               निीन भारत के विए विशि के विराितम संविधान की सज्शना की। संविधान की उद्ेवरका   एिं श्द्धा का केंद् बनकर भारती्य संविधान सामात््य भारती्य जनमानस की अक्णण
                                                                                                                                              ु
               में अवभव्यन््त-प्ा्त आिरगों तथा मू््यों की उदघोषणा से आरंभ कर संसिी्य िोकतंत्र   आसथा एिं विशिास का केंद् वबिु बना हुआ है। ्यही कारण है वक भारती्य संविधान के
                                                                                                          ं
               की संसथाओं की संरचना-सूचनातक, प्ावधकारर्यों के रन््त-अवधकार िण्शन से िेकर   प्वत अटूट विन्य और संविधान वनमा्शताओं के प्वत अप्वतम आिर हमारी सिाभाविक
               मौविक अवधकारों के प्ािधानीकरण एिं विवधक संरक्ण तक, विवभन्न रासन-अंगों में   भारती्य प्ितिी बनी हुई है। अपने अनेकानेक प्ािधानों में सौ से भी अवधक संरोधन
                                                                                             ृ
               िाव्यति-विभाजन से िेकर म्या्शिा-वनधा्शरण तक, तकनीकी व्यिसथाओं के सुवनशच्यन से   हो जाने के बाि भी भारती्य संविधान एक सनातन अवभिेख बना हुआ है। भारती्य
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               िेकर संसथाओं के पारसपररक समबत्धों तक एिं वन्यन््त, प्य्शिक्ण, संरक्ण, संरोधन,   संविधान की ्यह वन्यवमत पररित्शनरीिता और अपने मूिमंतव्यों तथा नैवतक मानिणडों
                                                    ु
               आवि के विवन्यमन से िेकर व्यन््त और राज्य के मध्य समभावित समसत अत्तःवक्र्याओं   को अपररित्शनी्य बना्ये रखने की क्मता ही इसे सनातन भारती्य परंपरा से सं्योवजत
               के माग्शिर्शन तक, भारती्य संविधान अपने सिरूप, आकृवत, प्कृवत, प्िवति और प््योग में   करती है। ्यही भारती्य सनातन िन्षट संविधान की आतमा ि प्ाणिा्यु के रूप में उसे
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               वनरंतर गवतरीि अवभिेख तथा सथा्यी विगिर्शक के अितार में उपन्सथत होता है।  अिम्य संजीिनी प्िान करती है।
                  गणतंत्र  की  आधुवनक  िन्शिक  अिधारणा  के  अनुरूप  विवधक  तथा  सांसथावनक   भारती्य संविधान की ्यह अत्तवन्शवहत सि्शसमािरी िन्षट भारती्यति के मूिविचार की
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                                                                                                                       े
                                                                                                                           ृ
               संवक्र्याओं का िण्शन तथा वििरण करने के साथ-साथ भारती्य संविधान औपबन्त्धक   अंतिृ्शन्षट है। इसी भारती्य िन्षट में समसत श्षठ विचारों की सहज सिीका्य्शता का विवरषट
                                                                                                       ृ
                                                                                                                  े
               व्यिसथाओं की त््याव्यक व्याख्या एिं पुनव्या्शख्या भी संकन््पत करता है। सांविधावनक   विचार विद्मान है। इसी भाि से ओतप्ोत होकर हम िविक काि से-आनोभद्ाः क्रतिो
                                                                                                                          ै
               संरोधन की प्वक्र्याओं में सार््य और जवटिता के सम्यक संतुिन से समसामव्यक   ्यत्तुविशितः- की उदघोषणा करते आए हैं, वजसमें सभी श्षठ एिं क््याणकारी विचारों
                                                                                                                             े
               आिश्यकताओं और समकािीन अपेक्ाओं के अनुरूप रूप-पररित्शन के द्ार भी भारती्य   का सभी विराओं और सभी सथानों से सिागत वक्या जाता है। इसी िन्षट से अत््यात््य
                                                                                                                                      ृ
               संविधान अनािति करता है। रन््त पृथ्करण के वसद्धात्तों को प्वक्र्यागत आधार प्िान   संविधानों में प्िृŸा श्षठ तŸिों को भारती्य संविधान के प्ारूप में सन्ममवित करने की प्रणा
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                                                                                                                                              े
                                                                                                  े
               करते हुए भारती्य संविधान संसथाओं की सीमा रेखाओं का वनधा्शरण भी करता है। अपनी   प्ा्त हुई है। इसीविए भारती्य संविधान समेवकत जनांकाक्ाओं का प्वतरूप बन जाता
               त््याव्यक संसथाओं को संरक्ा तथा व्याख्या का विवरषट अवधकार प्िान करते हुए भारती्य   है। ्यही कारण है वक िह अपने मूि मत्तव्यों में श्षठतम का समािर करने तथा अपनी
                                                                                                                       े
                                                                                                                                   े


                                                                                      70 Years of Indian Constitution                         145
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